भारतीय संगीत को लोगों तक पहुंचाने का कार्य कर रहा है 'संगीत संस्कृति स्कूल'


'संगीत संस्कृति स्कूल' के बच्चे कर रहे हैं नाम रोशन

दिल्ली के किनारे स्थित रामप्रस्थ में सुबह-शाम यहां गायन, वादन एवं नृत्य की स्वर लहरी गूंजती है इधर से जो भी गुजरता, मंत्रमुग्ध हो जाता है। दरअसल सोनिया डंगवाल जोकि खुद संगीत में पीएचडी हैं और करीब 20 वर्षों से संगीत की सेवा में लीन हैं। इनके द्वारा सिखाये गये शिष्यों को कितने ही सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका हैं।





'संगीत संस्कृति स्कूल' की स्थापना 2009 में की गयी ताकि हिन्दुस्तानी संगीत व संस्कृति से समाज के हर तबके को जोड़ा जा सके, चाहे वो गायन, वादन या फिर नृत्य हो। 'संगीत संस्कृति स्कूल' में नाम मात्र के शुल्क पर हर उम्र के लोगों को चाहे वे बच्चें हों, जवान हो या फिर बूढे हों उन्हें उनकी इच्छानुसार गायन, वादन या नृत्य सिखाया जाता है। सिखाना ही इस संस्थान का उद्देश्य नहीं है यह संस्थान उन्हें डिप्लोमा कोर्स प्रयाग समिति इलाहाबाद से करवाते हैं ताकि वे नाममात्र के शिक्षा लेकर न रह जायें उनके पास सीखने का प्रमाण हों ताकि वे उसका इस्तेमाल कई प्रकार से कर सकें।




सांस्कृतिक कार्यक्रमों में सक्रिय भूमिका



'संगीत संस्कृति स्कूल' सिखाने और डिप्लोमा कोर्स तक ही समिति नहीं हैं यह संस्थान समय-समय पर सामाजिक उत्थान के लिए आयोजित सरकारी व गैरसरकारी संस्थानों द्वारा आयोजित विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों में भी अपनी महत्वपूर्ण सहयोगिता दर्ज कराता रहा है। बेटियां फांउडेशन संस्था जोकि समाज में बेटियों के प्रति अलख जगा रही है उनके द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में 'संगीत संस्कृति स्कूल' के अभ्यार्थियों द्वारा विभिन्न प्रकार की प्रस्तुतियां दी गयी। 'मीडिया हब' जोकि इलेक्ट्रोनिक व प्रिंट मीडिया का समूह हैं द्वारा समाज सेवा में समर्पित पत्रकारिता के दौरान आयोजित कार्यक्रम में इस संस्थान की भी बहुत महत्वपूर्ण सहयोग रहा इस संस्थान के अभ्यार्थियों ने कई प्रकार से प्रस्तुतियाँ देकर महाराजा अग्रसेन के आॅडिटोरियम में चांर चांद लगा दिये थे। साथ ही कई सामाजिक संगठनों में भी समाज उत्थान व सहयोग की भूमिका हमेशा से रही है 'संगीत संस्कृति स्कूल' की। 'संगीत संस्कृति स्कूल' में आने वाले शिष्यों और जानकारों का कहना है कि सोनिया डंगवाल जी कठिन से कठिन राग को सरलतापूर्वक सिखाते हैं।  


सोनिया डंगवाल जी कहती हैं कि, आज के युग में प्राचीन गायन, वादन एवं नृत्य लुप्त सा होता जा रहा। इसे संवारने की जरूरत है। आज के शिष्य जल्द सफलता चाहते हैं। लेकिन, संगीत में निखार तभी आएगा, जब अधिक से अधिक रियाज किया जाएगा। आज की पीढ़ी में यह कमी है। जहां तक हो सकता है हम सभी को ये सब सरल रूप से सिखा कर अपना सहयोग दे रहे हैं।