सूर्य किरणों में होती है अद्भुत उपचार क्षमता


मनीषियों का कथन है कि सूर्य प्रकाश से अनेक रोगोत्पादक कृमियों का नाश होता है। शास्त्रों में वात (वायु) चिकित्सा के साथ-साथ सूर्य-चिकित्सा का विधान भी प्रमुखता से वर्णित है।


भगवान् सूर्य को प्रत्यक्ष देव कहा जाता है। वेदों के अनुसार वे स्थावर, जंगात्मक और समस्त विश्व की आत्मा हैं। भारतीय संस्कृत वाड्मय की सनातन परम्परा में भगवान भास्कर का स्थान अप्रतिम है। समस्त वेद, स्मृति, पुराण, रामायण, महाभारतादि ग्रंथ भगवान सूर्य की महिमा से भरे हुए हैं।


ऋग्वेद का कथन है कि सूर्य ही अपने तेज से सबको प्रकाशित करते हैं। यजुर्वेद में कहा गया है कि सूर्य ही सम्पूर्ण भुवन को उज्जीवित करते हैं। अथर्ववेद में प्रतिपादित है कि सूर्यदेव हृदय की दुर्बलता, हृदयरोग और कासरोग का शमन करते हैं। वेदों में आयुर्वेद का वर्णन है, वहीं आयुर्वेद के अन्तर्गत चिकित्सा की विभिन्न पद्धतियों में सूर्य चिकित्सा आदि का भी उल्लेख मिलता है।


सूर्य की किरणों में स्वास्थ्य संवर्धन और रोगों के नाश की भी अद्भुत शक्ति है। जिस तरह पौधों के विकास में फलने-फूलने हेतु सूर्य प्रकाश की नितांत आवश्यकता होती है, उसी प्रकार हमारे स्वास्थ्य के लिए भी यह उतना ही आवश्यक है। यह सर्वविदित है कि सूर्य विटामिन ‘डी‘ का सबसे सस्ता एवं बेहतरीन स्रोत है।


सूर्य आराधना का महत्वः-


सूर्य की आराधना-उपासना विविध रूपों में की जाती है। कुछ लोगा पूजात्मक, पाठात्मक विधि से सूर्य की उपासना करते हैं तो कुछ लोग जपात्मक एवं हवनात्मक विधि से उपासना करते हैं। अथर्ववेद के अनुसार-‘जिस प्रकार गरूड़ बस्ती से उड़कर दूर चलता जाता है, उसी प्रकार अपचनादि व्याधियां शरीर से दूर भाग जाती हैं। स्त्रियों में पाये जाने वाले रोग ‘आस्टोमलेशिया‘ का कारण सूर्य ताप की कमी ही होता है। महिलाओं में अधिक रोग पाये जाने का कारण सूर्य की रोशनी से दूर रहना ही होता है। सूर्य औषधि का निर्माण करते हैं और अपनी किरणों के माध्यम से अनेक रोगों को ठीक भी करते हैं।


पाश्चात्य विद्वान डाॅ. सोले ने लिखा है कि सूर्य में जितनी रोगनाशक शक्ति विद्यमान है, उतनी संसार के अन्य किसी भी पदार्थ में नहीं है। कैंसर, नासूर आदि दुसाध्य रोग जो बिजली या रेडियम के प्रयोग से भी ठीक नहीं किये जा सकते थे, सूर्य-रश्मियों का ठीक ढंग से प्रयोग करने से वे अच्छे हो गए


ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने अनेक तरह के जीव-जंतुओं में टी. बी., डिप्थीरिया जैसे रोगों के जीवाणुओं को इन्जेक्ट करके उनमें से कुछ को सूर्य प्रकाश से दूर बिल्कुल अंधेरी जगह पर रखा और कुछ को सूर्य प्रकाश वाले स्थान पर रखा। उन्हें आश्चर्यजनक परिणाम देखने को मिले। अंधेरे में रखे गये जंतु तीन-चार रोज में ही खत्म हो गए जबकि सूर्य प्रकाश में रखे गए जंतु सकुशल पाये गए। इससे सिद्ध होता है कि सूर्य रश्मियों में रोगाणुओं को नष्ट करने एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता को विकसित करने के गुण हैं।


सूर्य किरणों के सात रंग:-


शास्त्रों के अनुसार सूर्य के प्रकाश में सप्त रश्मियां-लाल, हरी, पीली, नीली, नारंगी, आसमानी, और कासनी रंग विद्यमान होती हैं। सूर्य की लाल किरणों के प्रयोग से समस्त वात व्याधियां, हरे रंग से समस्त त्वचा रोग, पीले रंग से समस्त उदर रोग, नीले रंग के प्रयोग से बुखार, पुरानी पेचिस, अतिसार, संग्रहणी, खांसी, कास-श्वास, शिरः शूल, शिरोरोग, गर्मी, प्रमेह, मूत्ररोग , विस्फोटक, श्लीपद आदि रोग नष्ट हो जाते हैं। इन रंगों की कमी से ही ये रोग पनपते हैं।



उगते सूर्य का महत्व:-


वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया है कि उगते हुये सूर्य की किरणों में अल्ट्रावायलेट किरणों का समावेश अधिक रहता है। इन किरणों से विटामिन ‘डी‘ एवं विटामिन ‘ए‘ की प्रचुर मात्रा शरीर को प्राप्त होती है। ‘लाइट इज लाइफ एण्ड डार्कनेस इज डेथ‘ के सिद्धान्तों के अनुसार प्रातः कालीन सूर्य की रश्मियों में स्नान करते रहने से यौन दुर्बलता नष्ट होती है तथा यौन शक्ति में विकास के साथ-साथ सुन्दरता में भी वृद्धि होती है।


आयुर्वेद शास्त्र भी कुष्ठ एवं अन्य चर्म रोगों में धूप सेवन की सलाह देता है जो आज की वैज्ञानिक दृष्टि में भी पूर्णतया प्रमाणिक सिद्व हुआ है। दरअसल इन वैज्ञानिक तथ्यों की झलक हमारी लोक परंपराओं में भी मिलती है। हमारे यहां बदन में तेल लगाकर धूप सेंकने का रिवाज प्राचीन काल से ही है।


दूर करें भ्रान्तियाँ:-


प्रायः यह धारणा बनी हुई होती है कि पसीने युक्त शरीर में स्नान करना हानिकारक होता है। यह धारणा निरापद है। शरीर को धूप में रखने से पसीना आता है। पसीना एक प्रकार का शारीरिक विष ही होता है। पसीने में ही ठंडे जल से रगड़-रगड़कर स्नान करना हानिकारक नहीं बल्कि गुणकारी हुआ करता है।


ध्ूाप कभी कोई हानि नहीं पहुंचाती, तथापि भरपेट भोजन के बाद कड़ी धूप में नहीं जाना चाहिए। खाली पेट कड़ी धूप में घूमने से कभी कोई हानि नहीं होती किंतु धूप में जाने से पूर्व दो गिलास जल अवश्य पी लेना चाहिए। धूप हमेशा लाभकारी होती है अतः धूप के सेवन से अपने शरीर को स्वस्थ रखने का प्रयास करते रहना हितकर होता है।



रोग के कारण:-


सूर्य चिकित्सा के सिद्धान्तों के अनुसार रोग उत्पत्ति का प्रमुख कारण शरीर में रंगों का घटना-बढ़ना होता है। रंग रसायनिक मिश्रण हंै। हमारा शरीर भी रसायनिक तत्वों से ही बना है। शरीर के विभिन्न अंगों में विभिन्न रंग होते हैं। चर्म का रंग गेहंुआ, केशों का काला, नेत्र गोलक का रंग सफेद होता है। शरीर में किस तत्व की कमी है, यह अंग परीक्षा द्वारा ही जाना जा सकता है। चेहरे की निस्तेजता का कारण रक्ताल्पता होती है।


डाॅ. होनग ने लिखा है कि रक्त का पीलापन, पतलापन, लौह की कमी और नसों की दुर्बलता आदि रोगों में सूर्य चिकित्सा अत्यंत ही लाभदायक होती है। सुप्रसिद्ध दार्शनिक योची का मत है कि जब तक संसार में सूर्य विद्यमान है, तब तक लोग व्यर्थ ही दवाओं के पीछे भटकते हैं। उन्हें चाहिए कि शक्ति, सौंदर्य और स्वास्थ्य के केन्द्र सूर्य की रश्मियों का स्नान करें। अन्य ऋतुओं की अपेक्षा वर्षा ऋतु में अनेक बीमारियों के अधिक होने के कारणों में प्रमुख कारण यह भी है कि इस ऋतु में सूर्य की किरणें बाधित रहती हैं।